"वक़्त के साथ-साथ
रिश्तों के कुछ तार पतले होने लगते हैं। चाहे वो रिश्ता खून का हो या दिल का या सिर्फ
मूंह-बोली का। हमें इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि किस तार को पतले होने से बचाना है
और कौन-सा तार हमारे जीवन में एक किरण का भी कारण नहीं बनता।" मैंने ये बात रवीश
से कही। रवीश मेरी ही बिल्डिंग के चोथे माले में रहता है और जो दूसरो की तरह मेरी राय
को तवज्जो देता है और अक्सर अपनी उलझनों को मेरे संग बात कर सुलझाने का प्रयास करता
है।
"मुझे तो दोनों
तारों से किरण मिलती है। मैं दोनों तारों को पतला नहीं होने दे सकता। मैं दोनों रिश्तों
में से किसी एक भी छोड़ नहीं सकता। एक तरफ रेहान है जो मेरी जान भी है और जीवन भी और
दूसरी तरफ मुस्कान है जो मेरा प्यार है, जिसके साथ में अपना जीवन गुजारना चाहता हूँ
और जिससे मैं शादी करना चाहता हूँ।" रवीश ने ये कह मुझे घोर असमंजस में डाल दिया।
रवीश कुछ साल पहले ही इस शहर में आया था। शायद कुछ ८ साल पहले। उस समय रेहान २ साल
का रहा होगा। रेहान उसका बेटा है पर रेहान की माँ कौन थी और वो कहाँ है रवीश ने कभी
ज़िक्र नहीं किया और कोई पूछता तो उसको बातों में उलझा देता और ये पहेली आज तक बनी
हुई है। सत्य क्या है मैंने कभी जानने की कोशिश नहीं की। कभी-कभी सत्य आग में घी डालने
का काम करता है। वो रिश्तों में मिठास के जगह ज़हर घोल देता है। मैं ये नहीं कहता कि हमें झूठ की बुनियाद पे रिश्तों के मकान खड़े करने चाहिए पर ये ज़रूर मानता हूँ कि कुछ सत्य अच्छे-भले पक्के माकन में सीडन की तरह फ़ैल जाते हैं और अन्दर अन्दर ही दीवारों
को खोखला कर देता हैं। सत्य तो ये है की रवीश ने रेहान को माँ-बाप दोनों का प्यार दिया।
उसे कभी किसी चीज़ की कमी का एहसास नहीं होने दिया। इस दौरान उसने दूसरी शादी करने
का सोचा भी नहीं। पर कब तक वो रेहान के लिए जीता रहेगा उसकी उम्र भी कुछ ज्यादा नहीं
है। ३३-३४ के आस-पास रवीश होगा। अभी तो उसके सामने पूरी ज़िन्दगी पड़ी है।
"मैं धर्म और स्वार्थ
के अधर में फँस गया हूँ। धर्म कहता है कि मैं अपने प्यार का बटवांरा नहीं कर सकता हूँ। जो रेहान का है उसे मिलना चाहिए पर स्वार्थ कहता है कि जीवन बहुत लम्बा है और सारी उम्र अकेले नहीं जिया जा सकता। कब तक रेहान मेरे साथ रहेगा। कुछ समय बाद तो वो मुझे छोड़
कर चला जाएगा। तब मैं क्या करूंगा जब शरीर साथ देना बंद कर देगा? तब मैं कैसे जीवन की
कठिन डगर पर अकेला चलूँगा। आप ही बताइए मैं क्या करूँ?"
"तुम मुस्कान
को घर पे बुलाते क्यों नहीं? रेहान से जब वो मिलेगी तो हो सकता है जो तुम सोच रहे हो
वो संकट कभी पैदा ही ना हो। और हो भी सकता है कि वो एक दूसरों को पसंद भी करें और तुम्हारी समस्या
का समाधान भी मिल जाये।"
"मैं ये कोशिश
भी कर चूका हूँ। मुस्कान कुछ महीनों से मेरे घर आती जाती है। मुझे लगा कि मुस्कान के घर आने से वो एक दूसरों से घुल मिल जाएँगे ताकि आगे साथ रहने में उन्हे कोई दिक्कत नहीं होगी। दोनो की आपस में काफ़ी बनने भी लगी थी और मुझे लगा कि ये सही वक़्त है आगे बात बढ़ाने का और इसी उद्देश् से पिछले हफ्ते मैने मुस्कान को रात के खाने के लिए घर पे बुलाया था। पर जब मैंने हमारी शादी की कही तो मानो चाँद से उसकी चांदनी चली गयी हो। बारिश
से किसी ने उसका पानी छीन लिया हो और मानो फूलों से उसकी खुशबू किसी ने छीन लिया हो। कुछ इस तरह रेहान के चेहरे से ख़ुशी का एक-एक कतरा चला गया । उसने उसके बाद खाने का
एक दान भी मूंह में नहीं डाला। मुस्कान को भी एहसास हो गया था कि रेहान इस बात से
ज़रा भी खुश नहीं है कि मैं और वो शादी करना चाहते हैं। उसे लगा कि रेहान को समय चाहिए
इस बात को समझने के लिए। मुस्कान ने सोचा कि उसका उस वक़्त चले जाना बेहतर होगा पर जाने से पहले उसने रेहान से हाथ मिलाते हुए पूछ लिया कि क्या वो
बुरी है? और रेहान ने धीरे से सर हिलाते हुए न कह दिया। फिर मुस्कान ने पुछा कि फिर
क्यों वो हमारी शादी की खबर से खुश नहीं है? तब रेहान ने उससे अपने हाथ को झटके से छुड़ाकर मुस्कान
को धक्का देते हुए मेरे से चिपक गया और कहा कि "कोई मुझसे मेरे पापा को छीन नहीं
सकता। कोई मेरे पापा को मुझसे दूर नहीं ले जा सकता।" और फिर जो उसने कहा वो सुनते
ही मेरे पैरों तले ज़मीन खिसक गयी। उसने कहा "मैं मर जाऊंगा पापा अगर आप से अलग हुआ तो, मैं मर जाऊंगा, मैं मर जाऊंगा।"
अपनी व्यथा को सुनाते
सुनाते रवीश के आँखों से आंसू छलक पड़े। पिता अपने बच्चों के लिए क्या कुछ नहीं करता।
खुद भूखा सो जाता पर अपने बच्चों का पेट खाली नहीं होने देता। अपनी इच्छाओं का गला
घोंट कर वो अपने बच्चों की हर ख्वाइश को पूरा करने में जुटा रहता है। येही पिता का
धर्म है। पर क्या पुत्र का ये धर्म नहीं है कि जब पिता को उसकी ज़रुरत हो तो वो उसका
सहारा बने उसका साथ दे और उसकी मदद करे। जब राजा ययाति को आजीवन वृद्ध-अवस्था का श्राप
मिला तो उसके पुत्र पुरु ने उसकी मदद के लिए आगे आया और अपनी जवानी ययाति को दे दिया।
राम ने पल भर के लिए भी नहीं सोचा और अपने पिता के वचन का मान रखने के लिए चौदह वर्ष
वनवास काटने के लिए तयार हो गये। जब पुत्र अपने पिता से ढेर सारी अपेक्षाएं रखता है
तो क्या पिता को इतना भी अधिकार नहीं कि वो अपने पुत्र से थोड़ी बहुत अपेक्षा रख सके?
"तुम रेहान से
बात करके देखो। मुझे लगता है वो तुम्हारी परिस्थिति समझ सकता है। शायद उसे थोडा समय
लगेगा पर मुझे यकीन है कि वो मुस्कान को अपना लेगा," मैंने रवीश को समझाते हुए
कहा।
"पिछले ६ महीनो
से मुस्कान मेरे घर आती जाती है। मुझे लगा कि वो एक दूसरो को इतनो दिनों में समझ लेंगे
और मुझे एहसाश होने भी लगा था कि वो एक दूसरो को पसंद करते हैं, पर मेरा विश्वास चकनाचूर
हो गया जब मैंने उसे हमारी शादी की बात बताई। उस दिन से मैं उससे कई बार बात करनी की
कोशिश कर रहा हूँ पर मैं खुद असमंजस में पड़ जाता हूँ। मुझे खुद यकीन नहीं है कि मैं
सही कर रहा हूँ कि नहीं। कभी लगता है कि मैं कितना स्वार्थी हो गया हूँ जो अपने धर्म
को भूल अपने ही पुत्र के दुःख का कारण बना हुआ हूँ।"
"धर्म को परिभाषित
करना मुश्किल ही नहीं असंभव है। उसके दायरे को सीमित नहीं किया जा सकता। धर्म समय के
साथ, परिस्थिति के साथ बदलता है। धर्म कहता है कि किसी भी निर्दोष जीव जंतु को मारना
पाप है पर ये कसाई का धर्म है कि मवेशियों को काट कर अपने घर के लालन-पोषण करे। जो
बदलता नहीं है वो धर्म का मूल सिधान्थ है जो ये कहता है कि हमें वो कार्य करना चाहिए
जिससे किसी की हानि न हो, किसी को आजीवन कष्ट और दुःख का सम्भोग न करने पड़े। हो सकता
है किसी कार्य के दौरान किसी को क्षण भर दुःख का भोग करना पड़े पर इसका अभिप्राय ये
नहीं होता कि वो कार्य धर्म के विरुद्ध है। सूर्य ग्रहण की तुलना काली रात से नहीं
की जाती। पतझड़ आकाल का पर्यावाची नहीं है। ये रेहान समझाना को होगा और अगर तुम नहीं समझा
सकते तो मैं कोशिश करने के लिए तयार हूँ।"
अगले दिन मैं रवीश
के घर पहुंचा। रेहान अपने कमरे में पढाई करने में व्यस्त है। मैंने उसके सर पर हाथ
रखते हुए कहा कि "इसको ऐसे करते हैं" उसके हाथ से पेंसिल लिया और कुछ गणित
के प्रश्नों को हमने साथ में हल किए। समय देख मैं रेहान से पुछा, "अच्छा रेहान
ये बताओ, कि तुम्हे सब से ज्यादा क्या करना पसंद है?"
रेहान की आँखों में
अचानक से एक चमक आय गयी और उसका चेहरा सूरजमुखी फूल की तरह खिल गया और उतेज्जित होकर
उसने कहा, "मुझे आसमान में हवाई जहाज को देखना बहुत पसंद है। जब भी मैं आसमान
की ओर देखता हूँ तो मेरी नज़र किसी जहाज को ढूंढती है और जैसे ही कोई जहाज मुझे दिखाई
देता है तो मैं दोड़ कर छत पे जाता हूँ और जहाज को देखता रहता हूँ।"
"और जब वो जहाज
तुम्हारी आँखों से दूर चला जाता है, आसमान के किसी मंडल में खो जाता है तो क्या तुम्हें
दुःख नहीं होता?"
रेहान ने अपना सर हिलाते
हुए मेरे प्रश्न का उत्तर हाँ में दे दिया। "जानते हो हर
व्यक्ति के जीवन में एक न एक जहाज होता है जिसे वो अपने से कभी दूर नहीं करना चाहता।
जिसे वो हमेशा अपने साथ रखना चाहता है। जैसे मेरे जीवन में मेरा जहाज मेरी कवितायेँ, मेरी कहानियां है। कोई इन्हें मुझसे दूर कर देगा तो मुझे बहुत दुःख होगा। वो तुम्हारे
माले में मिश्रा अंकल रहते हैं जिसके घर की घंटी बजा कर तुम भाग जाते हो, जिनको तुम
लोग 'खूसट बाबा' के नाम से चिडाते हो, जिन्हें परेशान करने का एक भी मौका नहीं छोड़ते।"
"वो भी तो कितना
हमें चिल्लाते हैं, यहाँ मत खेलो, ऐसा मत करो वैसा मत करो बोलते रहते हैं"
"पर जानते हो
उनका जहाज कौन है?"
"कौन," रेहान
ने आश्चर्य से पुछा?
"तुम!"
"मैं! वो कैसे,"
"कुछ दिन पहले
जब तुम बीमार पड़े थे तो वो दिन में ४-५ बार आकर तुम्हारा हाल पूछते थे। तुम जिस दिन
मस्ती नहीं करते तो वो तुम्हारे पिता से पूछने लगते है कि तुम्हे कुछ हुआ तो नहीं।
तुम्हे नहीं देखते वो परेशान हो जाते हैं, दुखी हो जाते है। वैसे ही तुम्हारे पिता
का भी एक जहाज है - मुस्कान। जैसे तुम्हे जहाज को देखते रहना पसंद है वैसे ही तुम्हारे
पापा को मुस्कान पसंद है और वो उसे कभी दूर नहीं होने देना चाहते।"
"अगर उन्होंने
शादी कर ली तो वो मुझे हॉस्टल भेज देंगे और फिर कभी-कभी ही मुझसे मिलें आयेगे," रेहान ने घबराते हुए कहा।
"ये तुमसे किसने
कहा?"
"चिराग ने।"
"कौन चिराग?"
"मेरे स्कूल में पढ़ता है और हॉस्टल में रहता है। उसके पापा ने दूसरी शादी कर ली और उसे हॉस्टल में
डाल दिया। उसे हॉस्टल अच्छा नहीं लगता। वो तो कई बार भाग जाने की भी सोचता है। और उसके
पापा उससे मिलने नहीं आते बस पैसे भिजवा देते है।"
"हाहा! तुम्हारे
पापा तुम्हारे साथ ऐसे हरगिज़ नहीं करेंगे। वो तो तुमसे बहुत प्यार करते है वो तुम्हे
कैसे दूर जाने देंगे। तुम्हारे पापा मुस्कान से बहुत प्यार करते हैं और उससे शादी करना
चाहते है पर वो शादी तब तक नहीं करेंगे जब तक तुम राज़ी नहीं होते। क्या तुम्हारे दोस्त
चिराग से उसके पिता ने मंज़ूरी ली थी? नहीं न, फिर क्यों ऐसा सोच रहे हो कि जो चिराग
के साथ हुआ वो तुम्हारे साथ भी होगा। जब तुम्हे हल्का सा भी बुखार आ जाता है तो वो
रात दिन सोते नहीं है बस तुम्हारे पास बेठे रहते हैं। तुम्हारा डर बेबुनियाद है। मैं
रवीश को बहुत अच्छे से जानता हूँ वो कभी तुम्हे दूर नहीं भेजेंगे और अभी भी तुम्हे
मेरी बातों पे यकीन न हो तो मैं तुमसे वादा करता हूँ, जिस दिन रवीश ने तुम्हे दूर भेजने की बात भी कही तो तुम मुझे बताना। उस दिन तुम्हारे पापा की खेर नहीं होगी," मैने ये बात रेहान से पूरे विश्वास के साथ कही जिसे सुनते ही उसके रेहान के चेहरे पे
हलकी से मुस्कान आ गयी।
फिर मैंने गंभीर स्वर में अपनी बात उसके सामने रखी और कहा,
"तुम अब बड़े हो गये हो। जैसे तुम्हारे पापा तुम्हारी हर इच्छा का ध्यान रखते है
उन्हें पूरा करते है वैसे ही तुम्हारा कर्त्तव्य है कि तुम भी उनकी इच्छा को पूरा करो।
और उनकी इच्छा है कि मुस्कान इस घर में हमेशा के लिए आ जाये और वैसे भी मुस्कान के
यहाँ आने से तुम्हारे पापा तुमसे दूर नहीं होंगे बल्कि तुम्हे एक नया दोस्त मिल जायेगा।
कुछ समझे?" रेहान ने सर हिलाते
हुए हाँ भर दी और मुझे एक पल लगा कि उसे अपनी गलती पर अफ़सोस भी है।
"चलो, कोई तुम्हारा
इंतज़ार कर रहा है," कहते हुए मैने अपनी बात पूरी करी।
मैं रेहान का हाथ थामे
कमरे से बहार आ गया। बहार रवीश और मुस्कान चेहरे पर कई शिकन लिए हुए बेठे थे। हमें
देख वो खड़े हो गये। मैंने रवीश के पास जाकर कहा, "तुमसे अच्छा पिता मैंने नहीं
देखा और चाहता हूँ तुम उतने ही अच्छे पति भी साबित हो। मैं चलता हूँ।"
जाते हुए मैंने पलट
कर देखा कि रेहान सर झुकाए हुए रवीश के पैरों से लिपट गया और उसने कहा, "मैं बहुत
खराब हूँ पापा, मुझे माफ़ कर दो।"
रवीश ने उसके चहरे
को अपने हाथों में लेकर कहा, "नहीं, तू तो सबसे अच्छा बेटा है और मैं तुझे कभी
छोड़ कर नहीं जाऊंगा"
रेहान ने मुस्कान की
तरफ देखते हुए कहा, "मुझे माफ़ कर दो। मैने उस दिन आप के साथ गलत किया। मैं डर
गया था पर अब मुझे यकीन है कि आप को मेरे पापा को मुझसे दूर नहीं करोगी।"
मैंने दरवाज़ा खोला
और बहार चला आया। कई रिश्तों के तार को पतले होने से बचाना मुश्किल लगता है पर यकीन
मानिये थोड़े से प्रयास से कई मुश्किलें दूर हो जाती है।
--लक्ष्य